Wednesday, May 20, 2020

Human rise

मानव समाज का उद्धार करने वाला  एक ही महान संत हैं वो कौन हैं?
आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता हैं वही पूर्ण संत हैं।

जो भी संत शास्त्रो के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। वह इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।
मनुष्य को अंधविश्वास,आर्थिक, सामाजिक और नशे जैसी हर बुराई से छुटकारा करवाने वाले इस विश्व मे एक ही हैं वो संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
इन्होंने मानव के लिए हर बुराई को दुर करने का प्रयास किया हैं और सफल भी हो रहें हैं इनके बारे में जाने क्या क्या मानव समाज के लिए किया है।
इनके शिष्य इन 👇👇👇👇👇सभी चीजों के बहुत खिलाफ हैं।
हुक्का, शराब, बीयर, तम्बाखु, बीड़ी, सिगरेट, हुलास सुंघना, गुटखा, मांस, अण्डा, सुल्फा, अफीम, गांजा और अन्य नशीली चीजों का सेवन तो दूर रहा किसी को नशीली वस्तु लाकर  तक भी नहीं देते  है। बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज इन सभी नशीली वस्तुओं को बहुत बुरा बताते हुए अपनी वाणी में कहते हैं कि -
सुरापान मद्य मांसाहारी, गमन करै भोगैं पर नारी। सतर जन्म कटत हैं शीशं, साक्षी साहिब है जगदीशं।।
पर द्वारा स्त्री का खोलै, सतर जन्म अंधा होवै डोलै। मदिरा पीवै कड़वा पानी, सत्तर जन्म श्वान के जानी।।

किसी प्रकार का कोई व्रत नहीं रखते हैं इनके अनुनायी।  न कोई तीर्थ यात्रा  करते , न कोई गंगा स्नान आदि करते, न किसी अन्य धार्मिक स्थल पर स्नानार्थ व दर्शनार्थ जाते  है। किसी मन्दिर व ईष्ट धाम में पूजा व भक्ति के भाव से नहीं जाते यही तो सही बात है कि इस मन्दिर में भगवान है। भगवान कोई पशु तो है नहीं कि उसको पुजारी जी ने मन्दिर में बांध रखा है। भगवान तो कण–कण में व्यापक है। ये सभी साधनाएँ शास्त्रो के विरुद्ध हैं।
इनके शिष्य ऐसे व्यक्ति का झूठा नहीं खाते है जो शराब, मांस, तम्बाखु, अण्डा, बीयर, अफीम, गांजा आदि का सेवन करता हो।
पराई स्त्री को माँ–बेटी–बहन की दृष्टि से देखते हैं, अण्डा व मांस भक्षण व जीव हिंसा नही करते  है। 
विवाह के समय दहेज न लेते हैं और न ही देते हैं इन यह सब  लेना व देना  कुरीति मानते है तथा मानव मात्र की अशांति का कारण है।  जिसने अपने कलेजे की कोर पुत्री को दे दिया फिर बाकी क्या रहा।
कोरोनो महामारी के चल रहे इस समय मे इनके शिष्य मानव उत्थान में बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं।भुखों को भोजन और हर जरूरत मंद वस्तु फ्री में दे रहे हैं।

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